तेरे प्यार का दस्तखत अब कहां 
ये जिन्दगी जब मुझे 
वक्त बेवक्त सताती है, 
शबनमी शीतल तेरे
आंचल की याद आती है। 
जब भी मैं थककर
घर की दहलीज चढ़ा करता हूं, 
ऐ मां,,, तेरे हाथों के
उस छुवन की याद आती है। 
हर निवाले पे
तेरे प्यार का दस्तखत अब कहां, 
अब तो जिन्दगी
मानों रफ्तार में ठहर जाती है। 
वजूद उस अहसान का
न मिटा है न मिटेगा कभी, 
ऐ मां,, कुछ देर ठहर
जिम्मेदारियां ही मुझे भरमाती है। 
चांदनी रात की वो लोरियां
वो शाह नवाबों की कहानियां, 
स्याह रात की थपकियां, 
आज भी जेहन में मुस्कुराती है। 
मां तेरी हूकूमत का ये नवाब
आज नाम का नहीं मोहताज, 
तेरी ही जुबां से मिला शब्द 
मेरी लिखावट में भी
अब "शैल" रंग आती है।
ओमप्रकाश चन्द्राकर "शैल"
आंचल की याद आती है।
घर की दहलीज चढ़ा करता हूं,
उस छुवन की याद आती है।
तेरे प्यार का दस्तखत अब कहां,
मानों रफ्तार में ठहर जाती है।
न मिटा है न मिटेगा कभी,
जिम्मेदारियां ही मुझे भरमाती है।
वो शाह नवाबों की कहानियां,
आज नाम का नहीं मोहताज,
अब "शैल" रंग आती है।
ओमप्रकाश चन्द्राकर "शैल"
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