Friday, January 1, 2016

ताकि इस बदले हुए युग में

बनी रहे प्रेम की सदभावना।
मेरे ह्रदय में अवतरित हुई ,
ये प्रेम की संवेदना,
अलाप करती हुई,
अंतर्मन में एक कामना...
स्वच्छंद विचरते खगों सी
प्रेम रूपी नभ में,
उड़ने की,
उनके नयनों के सागर की,
अथाह गहराई में तरना
उत्फुल्ल पुष्पों की,
नवरंग को निहारना
और इस सनातन प्रेम की,
अभिलाषाओं में बंधना
ताकि मेरे बाद भी,
इस बदले हुए युग में,
बनी रहे प्रेम की सदभावना।
ओमप्रकाश चन्द्राकर "शैल"

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