Monday, January 18, 2016

हर निवाले पे...

तेरे प्यार का दस्तखत अब कहां
ये जिन्दगी जब मुझे
वक्त बेवक्त सताती है,
शबनमी शीतल तेरे
आंचल की याद आती है।
जब भी मैं थककर
घर की दहलीज चढ़ा करता हूं,
ऐ मां,,, तेरे हाथों के
उस छुवन की याद आती है।
हर निवाले पे
तेरे प्यार का दस्तखत अब कहां,
अब तो जिन्दगी
मानों रफ्तार में ठहर जाती है।
‌वजूद उस अहसान का
न मिटा है न मिटेगा कभी,
ऐ मां,, कुछ देर ठहर
जिम्मेदारियां ही मुझे भरमाती है।
चांदनी रात की वो लोरियां
वो शाह नवाबों की कहानियां,
स्याह रात की थपकियां,
आज भी जेहन में मुस्कुराती है।
मां तेरी हूकूमत का ये नवाब
आज नाम का नहीं मोहताज,
तेरी ही जुबां से मिला शब्द
मेरी लिखावट में भी
अब "शैल" रंग आती है।
ओमप्रकाश चन्द्राकर "शैल"

Friday, January 1, 2016

ताकि इस बदले हुए युग में

बनी रहे प्रेम की सदभावना।
मेरे ह्रदय में अवतरित हुई ,
ये प्रेम की संवेदना,
अलाप करती हुई,
अंतर्मन में एक कामना...
स्वच्छंद विचरते खगों सी
प्रेम रूपी नभ में,
उड़ने की,
उनके नयनों के सागर की,
अथाह गहराई में तरना
उत्फुल्ल पुष्पों की,
नवरंग को निहारना
और इस सनातन प्रेम की,
अभिलाषाओं में बंधना
ताकि मेरे बाद भी,
इस बदले हुए युग में,
बनी रहे प्रेम की सदभावना।
ओमप्रकाश चन्द्राकर "शैल"