एक मुद्दत से मेरी माँ सोई नहीं..
मैने जो एक बार कहा था,,, माँ मुझे डर लगता है!!!
आज पूरा विश्व माँ
की ममता का नमन कर रहा है , जन्मदात्री के उपकारों को याद कर रहा है, लेकिन दिल
के किसी कोने में एक सवाल रह रह कर गूंज रहा है?
दरअसल बात उस वक़्त
की है जब मैं कवरेज के दौरान वृद्धाश्रम आया जाया करता था . जहाँ ममता को आधुनिकता
की बलिवेदी पर लटकता देख दिल खून के आंसू रोता रहता .. वहां उन माओं की स्तिथि देखकर
हैरान था जिन्होंने कभी अपने कलेजे के टुकड़े को सहेजकर पाला , उसे इस लायक बनाया की
इस दुनिया में कंधे से कन्धा मिलकर चल सके. पर आज ये क्या होने लगा माँ को कंधे का
सहारा चाहिए तब उसे ठुकरा दिया गया . क्या हम आधुनिकता के दौड़ में इतने अंधे हो गए
है ......? क्या एक माँ की सिसकियाँ हमें सुनाई नहीं दे रही है .......?
अब बात मैं उस ज़माने
की कर रहा हूँ जब मैं पैदा भी नहीं हुआ था , जब फॅमिली प्लानिंग की बात इतनी प्रचलित
नहीं थी . तब किसी घर में एक से दो साल के अंतर में बच्चे हुआ करते थे ऐसे में स्तनपान
के लिए किसी और महिला का सहारा लिया जाता था, अमूमन ऐसी महिलाएं आसपास या फिर घर में
काम करने वाली होती थी जिसके पहले से ही बच्चा होता था, लेकिन आज भले ही खुद की माँ
को बच्चे भूल गए हों माँ की ममता बिना स्वार्थ के , बिना भेदभाव के दोनों बच्चे को
अपने छाती से लगा लेती थी। इस बीच एक ऐसा रिश्ता कायम हो जाया करता था की बच्चे
ताउम्र
दो माँ का रिश्ता निभाते रहते। एक वो जिसने जन्म दिया और एक वो जिसने अपनी छाती
से लगाया और इस रिश्ते की डोर इतनी प्रगाढ़ थी कि दो परिवार पीढ़ी डर पीढ़ी एस रिश्ते
को निभाते चले आ रहे है। ये सब बाते आज मेरे इसलिए आ रही है क्योंकि ऐसे परिवारों
को अपने आसपास देखा है ..महसूस किया उनकी भावनाओं को।
खैर ! ये तो रही
बीते ज़माने कि बात ..आज तो खुद कि माँ पराई हो गई है . बदलते दौर के साथ हम क्यों
भूल जाते है कि माँ आज भी बच्चे को जन्म देती है , आज भी दूध पिलाती है और आज भी अपने
कलेजे के टुकड़े को जीवन के उस मुकाम तक ले जाती है जहाँ से वो अपने पैर पर चल सके
....बदला है तो सिर्फ माँ के प्रति बच्चों का नजरिया जिसका परिणाम है आज तिल तिल कर
जीती माएं ...जिन्हें वृद्धाश्रम का सहारा है .. पहली बार जब मैं आश्रम कि चौखट पर
गया तो मुझे लगा कि वाकई ये लोग खुश हैं .. लेकिन..... जब बात निकली तो ....दिल है
.....और दिल रोता भी है .....यहाँ जाने पर मुझे महसूस हुआ कि वाकई दुनिया कितनी बदल
चुकी है ..दूध का क़र्ज़ , ममता का क़र्ज़ ये महज शब्द ही रह गए है ..वो शब्द जिसके
मर्म को कोई समझना ही नहीं चाहता ..
हम भूल गए .....
कल जब हम छोटे थे और कोई हमारी बात नहीं समझ पाता था, तो सिर्फ एक ही थी जो हमारे टूटे
फूटे लब्ज़ समझ जाया करती थी ..हमारी ख़ुशी भी ..और हमारी तकलीफें ....वो शख्स कोई
नहीं माँ ही
है .... मगर आज जब
माँ के उपकारों से इस काबिल हो गए हैं कि अपने कंधों पर कईयों का बोझ उठा पायें तो
हम अपने माँ से कहने लगे .......
आप नहीं जानते ,
आप नहीं समझ पायेंगे
,
आपकी बाते मुझे समझ
में नहीं आती ..
यही बातें अगर हमने
बचपन में सुनी होती तो बोलना तो दूर हम चल भी नहीं पाते .
बहरहाल कहने के लिए
तो बहुत है लेकिन आज के दिन जितना जरूरी समझा कह दिया ....माँ की ममता का बखान मैं
नहीं कर सकता ..हाँ ...एक टीस मन में है जिसे जाहिर कर दिया ...
क्योंकि------------
माँ जब भी रोती थी
जब बेटा खाना नहीं खाता था
और माँ आज भी रोती
है जब बेटा खाना नहीं देता
very nice i appreciate....your feelings
ReplyDeletemaa ki bavnay our mamta me ble koi fark na aay ho le kin unke bahari shurup me kafi koch bablau aachuka hae jo unki jivan saeli ki jarurat bi hae
ReplyDeletekya bat hai yar
ReplyDeletehappy mothers day
i am ritedh
ritesh tikariha
shandar friend...
ReplyDeleteNo one can compare with mother..
Love mother and motherland.
बहुत अच्छे ओपी,आज बस इतना ही कह सकते हैं की मां तुझे सलाम्।
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। सार्थक एवं सफल ब्लॉगिंग के लिए शुभकामनाएं...
ReplyDeleteकृपया दूसरे ब्लॉग भी देखें और प्रतिक्रिया दें...
यार चंद्राकर जी, अपने तो आंसू निकलवा दिए।
ReplyDeleteअच्छा लगा आपको पढ़कर।
मेरी शुभकामनाएं।
बहुत अच्छी प्रस्तुति...
ReplyDeletehttp://rituondnet.blogspot.com/
bahut badhiya mere bhai.......
ReplyDeleteisi tarah ki lekhani ki aaj humaare samaaj ko zaroorat hai......
jo logon ke dimaag me bhi kranti kaari parivartan laaye....
warna aaj kal toh log blog ka upyog dusaron par kichad uchhalne ke liye kar rahe......
zindagi ek swal hai.har swal ka jwab maa hoti hai, maa alfaz me hi duniya ki paribhasha smahit hai mamta ki ras dhara prwahit kar om prakash jee aapne man ko jeet liya aap sadhuwad ke patr hai... aap likhte rahiye hum u hi padhate rahe......
ReplyDeletewww.goswamijournalist.blogspot.com ब्लॉग पढ़े और अपनी बहुमूल्य टिप्पणिया पोस्ट करे
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