Thursday, April 29, 2010

बरगद......

.... के पेड़ पे, झूलता बचपन
कोई लौटा दे...
मेरा खोया बचपन,
लौटा दे......
वो मेरा लड़कपन,
ले लो मुझसे ये सारा जीवन,
पर कोई दे दे...
वो बीता बचपन। 
वो गलियों में घूमता बचपन,
बरगद के पेड़ पे झूलता बचपन।
कोयल की कूक से कूकता बचपन,
वो दुःख दर्द से बेगाना बचपन।
माँ के आँचल की वह छाँव,
खुशियों से भरा वह गाँव।
वो कीचड़ से सने हुए पाँव,
कंचियों में लगता दांव।
पनघट पे बजता पबिरंजन,
दीवाली की शाम वो रौशन।
गाँव का अल्हड़ मस्ताना,
अब बचपन हो गया अंजना।
काश लौट कर आ जाता,
वो बचपन दुख से बेगाना।
ओमप्रकाश चन्द्राकर "शैल"

2 comments:

  1. kash aisa hota sach me ki bachpan laut kar aa pata

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  2. चन्द्राकर जी आपने तो वो भूला बचपन याद दिला दिया. भई क्या खुब लिखा है आपने. काश कोई लौटा दे वो बीते दिन....

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