Thursday, April 29, 2010

बरगद......

.... के पेड़ पे, झूलता बचपन
कोई लौटा दे...
मेरा खोया बचपन,
लौटा दे......
वो मेरा लड़कपन,
ले लो मुझसे ये सारा जीवन,
पर कोई दे दे...
वो बीता बचपन। 
वो गलियों में घूमता बचपन,
बरगद के पेड़ पे झूलता बचपन।
कोयल की कूक से कूकता बचपन,
वो दुःख दर्द से बेगाना बचपन।
माँ के आँचल की वह छाँव,
खुशियों से भरा वह गाँव।
वो कीचड़ से सने हुए पाँव,
कंचियों में लगता दांव।
पनघट पे बजता पबिरंजन,
दीवाली की शाम वो रौशन।
गाँव का अल्हड़ मस्ताना,
अब बचपन हो गया अंजना।
काश लौट कर आ जाता,
वो बचपन दुख से बेगाना।
ओमप्रकाश चन्द्राकर "शैल"

Tuesday, April 27, 2010

संघर्ष…

योग्यता का अयोग्यता से
जब दुखों के काले मेघ,
छाये हृदय में......
घोर निराशा छा जाती है.
और उस निराश हृदय में,
कल्पना के अलावा
कुछ नहीं होता.....
क्या उसे ज्ञात है ...?
इस बदले हुए दौर में
लक्ष्य यूँ ही नहीं मिलता..
परिश्रम तो करते हैं
पर फल नहीं मिलता
यहाँ संघर्ष है......
योग्यता का अयोग्यता से
जो योग्य है,
वह गलियों में है फिरता
और जो अयोग्य है
वह पूंजी देकर
अपनी किस्मत
ही खरीद लेता...
दफ्तरों में लम्बी कतार
योग्य उम्मीदवार..........?
वहीँ बगल में बैठा है
एक और उम्मीदवार
जिनके हाथों में
सिफारिश का तार....
फिर किसकी हस्ती है
जो दे उसे पछाड़.
ऐसे है इस युग के
बड़े कर्णधार.....
जो सिफारिशों की महत्ता को
स्वीकारते है
और योग्यता को
अपने पैरों तले रौंद कर
चल पड़ते है
एक और........
अयोग्यता की तलाश में।

ओमप्रकाश चन्द्राकर "शैल"